Vyas

Vyas

Sunday, 30 October 2016

प्रथमे नार्जिता विद्या,
द्वितीये नार्जितं धनम् ।
तृतीये नार्जितं पुण्यम् ,
चतुर्थे किं करिष्यति ।। 
( सुभाषितानि )

जिस मनुष्य ने पहले आश्रम ( ब्रह्मचर्य ) में विद्या नहीं अर्जित किया , दूसरे आश्रम ( गृहस्थ ) में धन नहीं अर्जित किया , तीसरे आश्रम ( वानप्रस्थ ) में पुण्य नहीं अर्जित किया वह मनुष्य चौथे आश्रम ( सन्यास ) में क्या अर्जित करेगा ? 

One who has not earned Vidya in the first Ashrama (Brahmacharya). One who has not earned wealth in second Ashrama (Grihastha). One who has not earned Punya in third Ashrama (Vaanprastha). What will he do in the forth Ashrama (Sanyasa) ?

Tuesday, 25 October 2016

That is knowledge which liberates

तत्कर्म यन्न बन्धाय,
सा विद्या या विमुक्तये ।
अनायासाऽपरं कर्म,
विद्याऽन्या शिल्पनैपुण्यम ॥
।।१-१९-४१॥ 
( विष्णुपुराणे प्रथमस्कन्धे एकोनविंशति अध्याय: ) 

( कर्म वही है जो सीमाओं में बँधा न हो । विद्या वही है जो हमें मुक्ति प्रदान करे । 
शेष सभी कर्म अनायास प्रयास मात्र है । शेष सभी विद्या शिल्प या निपुणता मात्र है ) 

[ That is action which does not promote attachment; that is knowledge which liberates. 
All other action is mere pointless effort; all other knowledge is merely craftsmanship or skill ]

Sunday, 16 October 2016

Great people once begin the work do not leave it despite hit by obstacles.

आरभ्यते नखलु विघ्नभयेन नीचै:,
प्रारभ्य विघ्नविहता विरमरन्ति मध्या: ।
विघ्ने: पुन: पुनरपि प्रतिहन्यमाना: ,
प्रारभ्य च उत्तमजना न परित्यजन्ति ।।
( पंचतन्त्र ) 

सामान्य लोग विघ्नों के भय से कार्य आरम्भ ही नहीं करते हैं । मध्यम लोग कार्य आरम्भ करने के बाद विघ्नों के आने पर रोक देते हैं । किंतु उत्तम लोग बार-बार विघ्नों के बावजूद भी कार्य आरम्भ करने के उपरांत उसे बीच में नहीं छोड़ते हैं । 

Ordinary people do not start the work due to the fear of obstacles. Medium people begin the work but leave them after hit by obstacles. But Great people once they begin the work do not leave it despite hit by obstacles again and again.

Friday, 14 October 2016

Person devoted to work does not care about sorrows and joys.

क्वचित् भूमौ शय्या, क्वचिदपि च पर्यङ्कशयन: ।
क्वचित् शाकाहारी, क्वचिदपि च शाल्योदनरूचि: ।
क्वचित् कन्थाधारी, क्वचिदपि च दिव्याम्बरधर: ।
मनस्वी कार्यार्थी न गणयति दु:खं न च सुखम् ।। 
( सुभाषितानि )

कभी भूमि पर सोना तो कभी पलंग पर शयन करना । कभी शाकभाजी खाना तो कभी सुस्वादु भोजन करना । कभी फटे कपड़े पहनना तो कभी दिव्यवस्त्र धारण करना । कार्य के प्रति समर्पित मनुष्य दुख और सुख के बारे में कभी नहीं सोचते हैं । 

Sometimes sleeps on floor and sleeps on fine bed at other times. Sometimes manages only with vegetables and eats delicious foods at other times. Sometimes wears torn clothes and wears elegant clothes at other times. The person devoted to work does not care about sorrows and joys.

Thursday, 13 October 2016

संस्कृत में शब्दों का प्रयोग

साक्षरा: विपरीताश्चेद् ,

राक्षसा: एव केवलम्

सरसो विपरीतश्चेत् ,

सरसत्वम् मुञ्चति ।।


कृपया ध्यान दें शब्दों का कैसे प्रयोग हुआ है

यदि 'साक्षरा:' शब्द को उल्टा कर

दें तो 'राक्षसा:' शब्द बनता है जबकि  'सरस' शब्द को विपरीत करने से भी 'सरस' साथ नहीं छोड़ता  


Plz pay attention as how words are used:

 If the word 'SAKSHARA' (literate) is inverted it becomes 'RAKSHASA' where as the word 'SARAS' (noble) is inverted it remains as 'SARAS' only.

Tuesday, 16 August 2016

योगक्षेमं वहाम्यहम् ।

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
( श्रीमद्भगवद्गीता ; अध्याय – ९ , श्लोक – २२)

( जो संन्यासी/ ज्ञानी अनन्य भाव से नारायण को आत्म रूप से जानते हुए मेरा निरंतर चिन्तन करते हुए मेरी निष्काम उपासना करते हैं । निरन्तर मुझमें ही स्थित उन परमार्थ ज्ञानियों का योग-क्षेम मैं चलाता हूँ । अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति योग है और प्राप्त वस्तु की रक्षा क्षेम है, उनके ये दोनों कार्य मैं करता हूँ । ) 

शंका :
अन्य भक्तों का योगक्षेम भी तो भगवान् ही चलाते हैं ?
यह बात ठीक है, अवश्य भगवान् ही चलाते हैं । किंतु भेद यह है कि जो दूसरे भक्त हैं वे स्वयं भी अपने लिए योगक्षेम सम्बन्धी चेष्टा करते हैं, पर अनन्यदर्शी भक्त अपने लिए योगक्षेम सम्बन्धी चेष्टा नहीं करते क्योंकि वे जीने और मरने में भी लोभ नहीं रखते, केवल भगवान ही उनके अवलम्बन रह जाते हैं । अतः उनका योगक्षेम स्वयं भगवान् ही चलाते हैं ।

Monday, 11 July 2016

Different people shed their sins in different ways

विद्यातीर्थे जगति विबुधा: साधव: सत्यतीर्थे,
गंगातीर्थे मलिनमनसो योगिनो ध्यानतीर्थे । 
धरातीर्थे धरणिपतयो दानतीर्थे धनाढ्या, 
लज्जातीर्थे कुलयुवतय: पातकं क्षालयन्ते ।। 
( विदुर नीति )

संसार में बुद्धिमान जन विद्यारूपी तीर्थ में, साधु जन सत्यरूपी तीर्थ में, मलिन मन वाले गंगातीर्थ में, योगीजन ध्यानतीर्थ में, नृप जन पृथ्वीतीर्थ में, धनी जन दानतीर्थ में और कुलीन स्त्रियाँ लज्जातीर्थ में अपने पापों को धोते हैं ।