न चोरहार्यं न च राजहार्यम् ,
न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि ।
व्यये कृते वर्धति एव नित्यम् ,
विद्या धनं सर्वधनं प्रधानम् ।।
( सुभाषितानि )
It cannot be stolen by Thieves. It cannot be taken away by Kings. It cannot be divided by Brothers. It does not have weight on your shoulders. If spent it always keeps growing. The ' Wealth of Knowledge' is the most superior wealth of all.
जिसे चोर चोरी नहीं कर सकता , जिसे राजा बल पूर्वक ले नहीं सकता , जिसे भाई बाँट नहीं सकते , जिसका कन्धे पर कोई भार नहीं होता । ऐसा ' विद्या रूपी धन ' सभी प्रकार के धनों में सर्वश्रेष्ठ होता है ।
आदरणीय सर,
ReplyDeleteसादर प्रणाम!
आप द्वारा किया जा रहा यह कार्य बहुत ही प्रेरणादायक है. जिस प्रकार आप इन सूक्तियों का वर्णन अपने ब्लॉग द्वारा समझाते हैं, वह अत्यंत ही रोचक और सरल है. ऐसे महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए भी यह सामाजिक योगदान जो आप द्वारा दिया जा रहा है वह अत्यंत ही प्रेरणादायक है. मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
आपने संस्कृत के उस श्लोक को चरितार्थ किया है जिसमे ब्राह्मण समाज में किस तरह और क्यों पूजनीय था बतलाया गया है -
देवाधीनं जगत् सर्व, मंत्रााधीनं च देवताः।
ते मंत्रााः ब्राह्णाधीनं, तस्मात् ब्राह्मण पूज्यते ॥