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यादृशै: सन्निविशते ,
यादृशांश्च उपसेवते ।
यादृग् इच्छेश्च भवितुं ,
तादृग् भवति पुरूष:।।
(चाणक्य नीति)
The man, whom he lives with; whom he serves to; whom he wishes to be alike; finally becomes like that only.
मनुष्य, जिस प्रकार के लोगों के साथ रहता है; जिस प्रकार के लोगों की सेवा करता है और जिनके जैसा बनने की इच्छा करता है; वैसा ही वह बन जाता है ।
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