रे रे चातक ! सावधान मनसा मित्र क्षणं श्रूयताम् ।
अम्बोदा बहवो हि सन्ति गगने सर्वेअपि नैतादृशा: ।।
केचिद् वृष्टिभिः आद्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा ।
यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं बचः ।।
( नीति शतकम् )
O Chatak..! Be attentive and listen to me carefully for a few minutes. There are so many clouds in the sky but all are not alike. Few of them make the earth wet by bringing the showers but few make noises only. Therefore, whom you see in the sky, do not make your begging request before them.
हे हे चातक ! मित्र सावधान होकर क्षण भर के लिए मेरे वचनों को सुनो । आकाश में बहुत से बादल हैं किन्तु सभी एक जैसे नहीं होते हैं । उनमें से कुछ बादल वर्षा करके पृथ्वी को गीला कर देते हैं और कुछ तो बेकार गरजते रहते हैं । इसलिए जिन-जिन बादलों को तुम आकाश में देखते हो, उन-उन के समक्ष अपने दीनतापूर्ण वचन मत बोलो ।
It's from भामिनीविलास written by जगन्नाथ पंडित
ReplyDeleteNice slok
ReplyDeleteI thought it was Re Re Kakaha ?
ReplyDeleteनीतिशतकम् भर्तृहरि
ReplyDeleteउत्तमम्
ReplyDeletegyanprad
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