अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
( श्रीमद्भगवद्गीता ; अध्याय – ९ , श्लोक – २२)
( जो संन्यासी/ ज्ञानी अनन्य भाव से नारायण को आत्म रूप से जानते हुए मेरा निरंतर चिन्तन करते हुए मेरी निष्काम उपासना करते हैं । निरन्तर मुझमें ही स्थित उन परमार्थ ज्ञानियों का योग-क्षेम मैं चलाता हूँ । अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति योग है और प्राप्त वस्तु की रक्षा क्षेम है, उनके ये दोनों कार्य मैं करता हूँ । )
शंका :
अन्य भक्तों का योगक्षेम भी तो भगवान् ही चलाते हैं ?
यह बात ठीक है, अवश्य भगवान् ही चलाते हैं । किंतु भेद यह है कि जो दूसरे भक्त हैं वे स्वयं भी अपने लिए योगक्षेम सम्बन्धी चेष्टा करते हैं, पर अनन्यदर्शी भक्त अपने लिए योगक्षेम सम्बन्धी चेष्टा नहीं करते क्योंकि वे जीने और मरने में भी लोभ नहीं रखते, केवल भगवान ही उनके अवलम्बन रह जाते हैं । अतः उनका योगक्षेम स्वयं भगवान् ही चलाते हैं ।
जीवन बीमा से दोहरी रक्षा
ReplyDeleteधन संचय परिवार सुरक्षा
गीता प्रत्यक्ष भगवान रुप का रुप है
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