वाँच्छा सज्जनसंगतौ परगुणेप्रीति: गुरौ नम्रता ,
विद्यायां व्यसनं स्वयोषिति रति: लोकापवादात् भयम् ।
भक्ति:शूलिनि शक्ति:आत्मदमने संसर्गमुक्ति: खलेषु ,
एते येषु वसन्ति निर्मलगुणा: तेभ्यो महद्भयो नम: ।।
( नीति शतकम् - भर्तिहरि )
Desire for friendship with noble persons, Appreciation of good qualities in Others, Humanity before the Guru, Thirst for the Knowledge, Conjugal pleasure with own Wife, Fear of Scandal about own Character, Devotion to Lord Shiva, Power to control own Desires, Avoiding company of Evil people. Salute to those great people who have these noble Qualities.
सज्जनों से मित्रता की इच्छा, दूसरों के गुणों की प्रशंसा, गुरू के साथ नम्रता, विद्या-अध्ययन में कंत रहना, अपनी पत्नी से प्रेम करना, लोकापवाद् से भय, भगवान् शंकर की भक्ति, इन्द्रियों के नियंत्रण की शक्ति, दुर्जनों के संसर्ग से मुक्ति - ये सभी 'निर्मल गुण' जिस मनुष्य में होते हैं हम उन्हें प्रणाम करते हैं ।
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