कौटिल्य के राजतन्त्र का आदर्श
प्रजा सुखे सुखं राज्ञ: ,
प्रजानाम् च हिते हितम् ।
न आत्मप्रियं हितं तस्य,
प्रजानाम् तु प्रियं हितम् ।।
( चाणक्य नीति )
[ राजा का अपना सुख कुछ नहीं है । प्रजा का सुख ही राजा का सुख है , प्रजा के हित में ही उसका हित है । राजा का अपना प्रिय और हित कुछ नहीं है । प्रजा का प्रिय और हित ही उसका प्रिय और हित है ]
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